मांझीनगढ़ पठार, खल्लारी (केशकाल) | manjhingarh hills, khalari (keshkal)

नमस्कार दोस्तो मैं अमृत नरेटी और आप सभी का इस बस्तर मिंटो ब्लॉग वेबसाइट मे स्वागत है | तो चलिए दोस्‍तो चलते हैं आगे की ओर तब तक के लिए आप इस पोस्ट पर बने रहिए और पढ़ते रहिए |

तो आज हम बताने वाले हैं आपको मांझीनगढ़ पठार के बारे में, मांझीनगढ़ छत्तीसगढ़ प्रदेश के कोण्डागाँव जिले के अंतर्गत आने वाला विकासखंड बड़ेराजपुर(विश्रामपुरी) के ग्राम पंचायत खल्लारी में 
प्राकृतिक सौंदर्यता से परिपूर्ण मांझीनगढ़ पठार स्थित है |
मांझीनगढ़ जाने के लिए आपको केशकाल से पूर्व दिशा की ओर विश्रामपुरी जाना होगा, मांझीनगढ़ केशकाल से 30km की दूरी पर स्थित है और विश्रामपुरी से केशकाल 17km की दूरी पर स्थित है| सबसे पहले आपको केशकाल से विश्रामपुरी जाना होगा उसके बाद आपको विश्रामपुरी से खल्लारी जाना होगा जो कि विश्रामपुरी से 13km की दूरी पर स्थित है और खल्लारी से आपको मांझीनगढ़ पठार जाने के लिए कच्ची - ऊँची सड़को का सामना करके पठार में चड़कर पहुंचना होगा | जब आप मांझीनगढ़ पठार पर पहुंच जाओगे तो आपको वहां की सुंदर वादियों को देखकर ऐसा लगेगा कि मानो मैं स्वर्ग पर उतर आया हूँ और चारो ओर दूर दूर तक फैला हरियालियो से भरा परिपूर्ण जंगल घिरा हुआ है, इस पठार की ऊंचाई समुद्र तल से लगभग 2664 फीट ऊंचाई पर स्थित है और लगभग लगभग 1000 हेक्टेयर मे फैला भूगोलिक विशिष्टता एवं सौन्दरता से परिपूर्ण है |
यह मांझीनगढ़ पठार पहले लोगो के लिए गुमनाम था य‍ह पठार ज्यादा ऊंचाइयों मे होने की वजह से ज्यादा खतरनाक भी था इसलिए यहां कोई नहीं आते थे, जब केशकाल वन मंडल के पद पर कार्यरत ifs श्री धमशील गंडवीर ने ईको पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए कदम उठाया तो उसका यह प्रतिफल रहा कि लोग आज वहां आ जा पा रहे हैं |
इस मांझीनगढ़ के पीछे भी कुछ रोचक एवं रहस्य रोमांच से भरा कहानी छिपा हुआ है |
बताया जाता है कि कभी यहां बहूत ही बौने कद और बहुत बड़े बड़े कान के ऊइका लोगो का यह गढ़ था, जो बाहर से आकर यहां अपना गढ़ स्थापना कर साम्राज्य स्थापित कर लिये थे |
उईका लोग तालाब खोदने मे बहुत माहिर थे उन लोगों ने बहुत सारी तालाब खोद डाले थे |

गुफानुमा खोह में आज भी पंजे का निशान
भूले भटके भी कोई दूसरे स्थान का आदमी यहां पहुंच जाता था तो उईका लोग उसे मारकर खा जाते थे, मारने के बाद उसके खून से यहां के खोह में पंजा का निशान लगा देते थे |
य‍ह बताते हुए लोग वहां के गुफानुमा खोह को दिखाते हैं, जहां पर आज भी पंजे का निशान दिखाई देता है |
यहां पर हर वर्ष एक बार भादो मास में जात्रा होता है, जिसमे दूर दूर से ग्रामीण लोग बड़ी संख्या में आस्था एवं विश्वास लेकर भाग लेते हैं |
यह एक बहुत ही अच्छा व्यू टुरिस्ट पॉइंट हैं एवं बहुत ही आकर्षण का केंद्र है आप भी यहां एक बार जरूर आइएगा |

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