चापडा़ चटनी
पुरे विश्व में बस्तर जितना अपनी संस्कृति एवं रिति रिवाजो के लिये जाना जाता है उतना ही अपनी खानपान एवं आयुर्वेदिक जडी़ बुटी के लिये भी जाना जाता है यहाँ की जो खान पान होती है वो एकदम प्राकृतिक एवं आयुर्वेदिक होता है। बस्तर की एक ऐसी खाद्यय पदार्थ (लाल चिट्टी की चटनी) जिसे बस्तर की आम बोल चाल भाषा में चापडा़ चटनी कहा जाता है जिसकी सेवन करने से ज्वार बुखार,मलेरिया,सर्दी खासी और भी कई बीमारिया ढीक हो जाती है इन बीमारियों के ढीक होने के पीछे लाल चिट्टी में पायी जाने वाली फ़ोर्मिक एसिड (formic acid) CH₂O₂ के रसायनिक क्रिया की वजह से है।
यह लाल चिट्टी मैदानी एवं पहाडी़ इलाको में पायी जाती है ये अधिकतर नदी किनारे देखने को मिलता है, ये अपना घर किसी भी पेड़ के पत्तियों के सहारे बनाते है तथा ये अपना घर कई पत्तियों को आपस में चिपका के गोलाकार रुप में बनाते है इस गोलाकार घर में कई सारी लाल चिट्टिंया रहती है और उनके जो अंडे होते है वो गुम्फन जैसी गोलाकार घर के अंदर होती है जिस अंण्डे को लोग चटनी बना के सेवन करते है।
तो चलिए अब हम समझते है कि बस्तर के आदिवासी समुदाय के लोग इस लाल चिट्टी (चापडा़) का करते क्या है तथा इस चिट्टी एवं इसके अंण्डे को किस तरह से उपयोग करते है
बस्तर के आदिवासी समुदाय के लोग अपनी ज्वार,बुखार, मलेरिया,सर्दी,खासी के इलाज के लिये डाक्टर के पास बहुत ही कम जाते है और वो अपनी इलाज कुछ देसी तरीके से करते है अगर किसी को मलेरिया हो गया हो तो वो लाल चिट्टी को अपने शरीर में छिड़क के लाल चिट्टीयों से कटवाता है जब लाल चिट्टिंया शरीर को काटती है तो वो एक formic acid CH₂O₂ छोड़ती है जो शरीर में प्रवेश कर रसायनिक क्रिया करती है जिससे मलेरिया कुछ हद तक ठीक हो जाती है, ठीक वैसे ही सर्दी खासी को ठीक करने के लिये भी शरीर को चिट्टियो से कटवाना पड़ता है और उससे जो formic acid निकलती है उसे अपने हाथो में रगड़ के उसे नाक में सुंघने से सर्दी और खासी कुछ हद तक ठीक हो जाती है।
अब हम बताते है कि इसका सेवन कैसे करते है-
बस्तर के आदिवासी समुदाय के लोग सबसे पहले लाल चिट्टियों के गोलाकार घर के डंगाल को तोड़कर पान के पत्तल या दोना या किसी भी प्रकार के थैला या पात्र में लाल चिट्टियों के अंण्डे को एकत्रित करते है और अंण्डे के साथ कुछ लाल चिट्टिंया भी पात्र में एकत्रित हो जाती है, उसके बाद एकत्रित अंण्डे एवं लाल चिट्टिंयो को घर ले आते है और उसके बाद कचरा एवं चिट्टियो को अलग कर लेते है एवं पानी से धो के साफ करते है और अलग एवं साफ कर लेने के बाद चिट्टिंयो के अंडे को सब्जी की तरह मिट्टी के बर्तन में डाल के स्वादनुसार नमक, मिर्च, हल्दी, मसाला डाल के चुल्हे में पका के चटनी बनाते है और लाल चिट्टिंयो को भी कुछ इसी तरह चटनी बनाते है तथा सिल पत्थर में भी स्वादनुसार नमक,मिर्च, हल्दी एवं लाल चिट्टियो के अंडे को पीसकर चटनी बनाते है, और जिस तरह अचार बनाते है उसी तरह लाल चिट्टिंयो एवं अंडे को भी चटनी बनाकर बहुत दिनों तक रखते है और इस प्रकार कई तरीको से चटनी बनाकर सेवन करते है इनके सेवन करने से ज्वार,बुखार,मलेरिया, और भी कई बीमारिया कुछ हद तक ठीक हो जाती है। अगर आप लाल चिट्टिंयो कें अंडे के चटनी को सेवन करेंगे तो ही आपको ज्यादा फायदेमंद होगा अगर आप सिर्फ लाल चिंट्टियो का ही सेवन करेंगे तो कोई मतलब नहीं है। चाहे तो आप इसे एक बार जरूर अजमाये,अगर हम इसकी मार्केट की बात करे तो आपको लगभग बस्तर के हर बजार में मिल जायेगा, बजार में आदिवासी दोना एवं पत्ता में निकाल के बिक्री करते है।
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