छत्तीसगढ़ प्रदेश के बस्तर संभाग जितना ज्यादा अपनी जल जंगल जमीन झरना और नदी - पहाड़ के लिए प्रसिद्ध है, उतना ही अपनी कला, संस्कृति एवं रिति - रिवाजों के लिए भी प्रसिद्ध है|
यह ककसाड़ नृत्य एवं त्योहार (पंडुम) एवं गोत्र पर्व बस्तर संभाग के एक छोटा एवं सुन्दर सा जिला नारायणपुर(अबुझमाड़) एवं कोंडागांव जिला में मनाया जाता है| यह ककसाड़ नृत्य मुरिया(अबुझमाड़िया) एवं गोंड़ जनजाति समुदाय के लोग करते हैं, तथा यह नृत्य इस जनजाति समुदाय का मुख्य नृत्य है, यह ककसाड़ एक धार्मिक नृत्य है, तथा यह एक गोत्र पर्व भी है| इस पर्व को मनाने कई गांवों के ग्रामीण अपनी आस्था रखके अपने आराध्य देवी देवताओं के साथ पहुँचते है,और पुजा अर्चना करते है| यह नृत्य फसल एवं अन्य फल जो आदिवासियों के प्रकृति से जुड़ी होती है तथा इसके साथ वर्षा के देवता "ककसाड़" पुजा के समय किया जाता है इसमें युवक युवतियों की प्रमुख भूमिका होती है गायता, सिरहा, गुनिया एवं गांव के पुजारी इस पुजा को सम्पन्न कराते हैं।
फिर मांदर, ठोल, नगाडा, तुड़बुड़ी, मोहरी आदि वाद्य यंत्र के साथ नृत्य प्रारंभ होती है| ककसाड़ नृत्य के साथ संगीत और घुँघरू की मधुर ध्वनि एवं मांदर - ढोल के ताल सुहावने आवाज से पुरा प्रकृति झुम उठता है| इस नृत्य को करते समय युवक धोती एवं रंगीन, आकर्षक कपड़े पहने होते हैं, तथा अपने कमर में पीतल एवं लोहे के घंटियां से बने कमरबंध बेल्ट और हिरनांग बांधे रहते हैं| इस बेल्ट को देखने में बहुत सुंदर एवं आकर्षक दिखता है, ऐसा आभूषण आपको कहीं देखने को नहीं मिलेगा अगर आप आदिवासियों के करीब जायेगें तभी आपको यह आभूषण देखने को मिलेगा तथा इसके अलावा युवा अपने सर में सफेद पगड़ी बांधे होते हैं, जो कि यह पगड़ी इनकी पहचान होती है| और यह पगड़ी हर आदिवासियों की भी पहचान है| और इसके साथ कलगी और कौड़ियों तथा मंजूर के पंख से श्रृंगार कर आकर्षण वेशभूषा व्यक्त करतें हैं|
और युवती रंगीन एवं आकर्षक साड़ी जो आदिवासियों की स्टाइल में पहने होते है, जिसमें युवती साड़ी को पाव से थोड़ा उपर से पहनते हैं| तथा ब्लाउज भी पहनते है या तो नहीं भी पहनते है| और इसके अलावा युवती हाथों में नागमोरी, पाॅव में ऐठी, घुँघरू एवं गले में सिक्का का माला तथा डोरा पहने होते हैं| और इसके साथ माथे में रूमाल की पट्टी बांधे होते हैं| एवं सिर में कलगी कौड़ियों तथा मंजुर के पंख से श्रृंगार किये होते हैं|
और ये लोग नृत्य करते समय युवक - युवती एक अर्ध वृत बनाते है, और लड़किया एक हाथ में एक दूसरे की कमर पकड़कर एक हाथ में लोहे की छड़ लेकर मांदर की ताल एवं संगीत के साथ नाचते हुए लोहे की छड़ जमीन पर टिका देते है| वही दुसरी ओर लड़के अर्ध वृत बनाकर आएंँ बाएंँ दाएँ घूमकर संगीत के साथ मांदर एवं ढोल बजाते नृत्य करते हैं|
और इस पर्व के बाद ही इस जनजातियों के शादी ब्याह शुरू होते हैं|इस पर्व को अलग अलग गाँव में अलग अलग समय किया जाता है|और इस नृत्य के माध्यम से युवक - युवतियों को अपना जीवनसाथी ढूँढने का भीअवसर प्राप्त होता है|
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